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इ॒दमा॑पः॒ प्र व॑हत॒ यत्किं च॑ दुरि॒तं मयि॑। यद्वा॒हम॑भिदु॒द्रोह॒ यद्वा॑ शे॒प उ॒तानृ॑तम्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idam āpaḥ pra vahata yat kiṁ ca duritam mayi | yad vāham abhidudroha yad vā śepa utānṛtam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। आ॒पः॒। प्र। व॒ह॒त॒। यत्। किम्। च॒। दु॒रि॒तम्। मयि॑। यत्। वा॒। अ॒हम्। अ॒भि॒ऽदु॒द्रोह॑। यत्। वा॒। शे॒पे। उ॒त। अनृ॑तम्॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:23» मन्त्र:22 | अष्टक:1» अध्याय:2» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:22


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे जल किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - मैं (यत्) जैसा (किम्) कुछ (मयि) कर्म का अनुष्ठान करनेवाले मुझमें (दुरितम्) दुष्ट स्वभाव के अनुष्ठान से उत्पन्न हुआ पाप (च) वा श्रेष्ठता से उत्पन्न हुआ पुण्य (वा) अथवा (यत्) अत्यन्त क्रोध से (अभिदुद्रोह) प्रत्यक्ष किसी से द्रोह करता वा मित्रता करता (वा) अथवा (यत्) जो कुछ अत्यन्त ईर्ष्या से किसी सज्जन को (शेपे) शाप देता वा किसी को कृपादृष्टि से चाहता हुआ जो (अनृतम्) झूँठ (उत) वा सत्य काम करता हूँ (इदम्) सो यह सब आचरण किये हुए को (आपः) मेरे प्राण मेरे साथ होके (प्रवहत) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं॥२२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग जैसा कुछ पाप वा पुण्य करते हैं, सो सो ईश्वर अपनी न्याय व्यवस्था से उनको प्राप्त कराता ही है॥२२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्ताः कीदृश्य इत्युपदिश्यते।

अन्वय:

अहं यत्किंच मयि दुरितमस्ति यद्वा पुण्यमस्ति यच्चाहमभिदुद्रोह या मित्रत्वमाचरितवान् यद्वा कञ्चिच्छेपे वाऽनुगृहीतवान् यदनृतं वोत सत्यं चाचरितवानस्मि तत्सर्वमिदमापो मम प्राणा मया सह प्रवहत प्राप्नुवन्ति॥२२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) आचरितम् (आपः) प्राणाः (प्र) प्रकृष्टार्थे (वहत) वहन्ति। अत्र व्यत्ययो लडर्थे लोट् च। (यत्) यादृशम् (किञ्च) किंचिदपि (दुरितम्) दुष्टस्वभावानुष्ठानजनितं पापम् (मयि) कर्तरि जीवे (यत्) ईर्ष्याप्रचुरम् (वा) पक्षान्तरे (अहम्) कर्मकर्ता जीवः (अभिदुद्रोह) आभिमुख्येन द्रोहं कृतवान् (यत्) क्रोधप्रचुरम् (वा) पक्षान्तरे (शेपे) कंचित्साधुजनमाक्रुष्टवान् (उत) अपि (अनृतम्) असत्यमाचरणमानभाषणं कृतवान्॥२२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यादृशं पापं पुण्यं चाचर्य्यते तत्तदेवेश्वरव्यवस्थया प्राप्यत इति निश्चयः॥२२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसे जसे पाप व पुण्य करतात तसे ईश्वर आपल्या न्यायव्यवस्थेने त्यांना त्याचे फळ देतो. ॥ २२ ॥